बेटा हो या बेटी! पिता की प्रॉपर्टी में कौन कितना हकदार? जानिए नया कानून क्या कहता है Property Rights

By Ankita Shinde

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Property Rights  आधुनिक भारत में पारिवारिक संपत्ति को लेकर उत्पन्न होने वाले विवाद एक गंभीर समस्या बन गए हैं। रिश्तेदारों के बीच धन-संपत्ति के बंटवारे को लेकर होने वाली अनबन न केवल पारिवारिक रिश्तों को तोड़ती है, बल्कि समाज में भी कड़वाहट फैलाती है। इन समस्याओं का मूल कारण कानूनी अज्ञानता और परंपरागत सोच है, जिसके कारण विशेषकर महिलाओं को उनके वैध अधिकारों से वंचित रखा जाता है।

भारतीय संपत्ति कानून की मूलभूत बातें

संपत्ति के विभिन्न रूप

भारतीय न्यायिक व्यवस्था के अंतर्गत संपत्ति को मुख्यतः दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:

वंशानुगत संपत्ति: यह वह धन-संपदा है जो पूर्वजों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थानांतरित होती आई है। इस प्रकार की संपत्ति में परिवार के प्रत्येक सदस्य का जन्मसिद्ध अधिकार होता है।

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व्यक्तिगत संपत्ति: यह किसी व्यक्ति द्वारा अपने श्रम, व्यवसाय, निवेश या अन्य वैध माध्यमों से अर्जित की गई संपदा होती है।

व्यक्तिगत संपत्ति पर मालिकाना हक

जब कोई व्यक्ति अपनी मेहनत और कमाई से संपत्ति का निर्माण करता है, तो उस पर उसका संपूर्ण अधिकार होता है। ऐसी स्थिति में संपत्ति के मालिक को यह स्वतंत्रता होती है कि वह अपनी इच्छानुसार संपत्ति का वितरण करे। यदि कोई व्यक्ति वसीयत के माध्यम से अपनी संपत्ति का बंटवारा निर्धारित करता है, तो वह कानूनी रूप से मान्य होगी।

वसीयत की अनुपस्थिति में संपत्ति विभाजन

जब किसी व्यक्ति की मृत्यु बिना वसीयत के हो जाती है, तो उसकी व्यक्तिगत संपत्ति का विभाजन हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार होता है। इस स्थिति में पुत्र और पुत्री दोनों को समान अधिकार प्राप्त होते हैं। यही कारण है कि जीवनकाल में ही वसीयत तैयार करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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वंशानुगत संपत्ति में अधिकार

समानता का सिद्धांत

वंशानुगत संपत्ति के मामले में पुत्र और पुत्री दोनों का जन्म से ही समान अधिकार होता है। 2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून में किए गए महत्वपूर्ण संशोधन ने महिलाओं को भी पैतृक संपत्ति में पुरुषों के समान हिस्सेदारी का अधिकार प्रदान किया है। यह एक क्रांतिकारी बदलाव था जो लैंगिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

धार्मिक आधार पर कानूनी प्रावधान

भारत की विविधता को देखते हुए, विभिन्न धर्मों के लिए अलग-अलग संपत्ति कानून निर्धारित किए गए हैं:

हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदाय: इन धर्मों के अनुयायियों पर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू होता है, जो पुत्र और पुत्री को समान अधिकार देता है।

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मुस्लिम समुदाय: इस्लामिक कानून के अनुसार, पुत्रियों को पुत्रों की तुलना में लगभग आधा हिस्सा मिलता है। हालांकि, न्यायालयों के कई निर्णयों में महिलाओं को समान अधिकार देने की बात कही गई है।

महिलाओं के अधिकारों में बाधाएं

सामाजिक और मानसिक बाधाएं

अक्सर महिलाओं को उनके वैध अधिकारों से वंचित रखा जाता है, जिसके पीछे निम्नलिखित कारण हैं:

  1. जागरूकता की कमी: अधिकांश महिलाओं को अपने कानूनी अधिकारों की पूर्ण जानकारी नहीं होती।
  2. पारिवारिक दबाव: समाज और परिवार के सदस्य महिलाओं पर मानसिक दबाव डालकर उन्हें अपने अधिकारों का त्याग करने के लिए प्रेरित करते हैं।
  3. दस्तावेजी छुपाव: महत्वपूर्ण कागजात और वसीयत की जानकारी महिलाओं से छुपाई जाती है।
  4. सामाजिक भय: महिलाएं पारिवारिक रिश्तों को बिगड़ने के डर से अपना हिस्सा मांगने से झिझकती हैं।

विवादों से बचने के उपाय

पारदर्शिता और संवाद

पारिवारिक संपत्ति विवादों से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:

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  1. स्पष्ट संवाद: परिवार के सभी सदस्यों के साथ खुली और ईमानदार चर्चा करना।
  2. समय पर वसीयत: जीवनकाल में ही स्पष्ट और कानूनी रूप से मान्य वसीयत तैयार करना।
  3. कानूनी सलाह: योग्य वकील या कानूनी सलाहकार से परामर्श लेना।
  4. दस्तावेजीकरण: सभी संपत्ति संबंधी दस्तावेजों को सुरक्षित रखना और परिवार के सदस्यों को इसकी जानकारी देना।

आधुनिक कानूनी दृष्टिकोण

समानता की नई परिभाषा

वर्तमान कानूनी व्यवस्था स्पष्ट रूप से घोषणा करती है कि लिंग के आधार पर संपत्ति के अधिकारों में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। पुत्र और पुत्री दोनों को समान रूप से पारिवारिक संपदा में हिस्सेदारी का अधिकार है। यह न केवल एक कानूनी आवश्यकता है बल्कि सामाजिक न्याय का भी मूलभूत सिद्धांत है।

सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता

समय की मांग है कि हम अपनी पुरानी सोच को बदलें और महिलाओं को उनके वैध अधिकार दिलाने में सहयोग करें। पारिवारिक सद्भावना और समझदारी से अधिकांश संपत्ति विवादों को रोका जा सकता है।

संपत्ति विवादों की जड़ में जानकारी की कमी और पारंपरिक मानसिकता है। लैंगिक समानता न केवल एक कानूनी आवश्यकता है बल्कि सामाजिक न्याय का भी आधार है। परिवारों को चाहिए कि वे उचित समय पर कानूनी औपचारिकताएं पूरी करें, पारदर्शिता बनाए रखें और महिलाओं को उनके वैध अधिकार दिलाएं। इससे न केवल पारिवारिक शांति बनी रहेगी बल्कि समाज में भी न्याय और समानता की भावना का विकास होगा।

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एक न्यायसंगत समाज का निर्माण तभी संभव है जब हम सभी को समान अधिकार देने की दिशा में आगे बढ़ें और लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास करें।


अस्वीकरण: उपरोक्त जानकारी इंटरनेट प्लेटफॉर्म से ली गई है। हम इस बात की 100% गारंटी नहीं देते कि यह समाचार पूर्णतः सत्य है। इसलिए कृपया सोच-समझकर आगे की प्रक्रिया करें। किसी भी कानूनी कार्रवाई से पहले योग्य वकील या कानूनी सलाहकार से परामर्श अवश्य लें।

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