सास ससुर की प्रोपर्टी में दामाद का कितना हिस्सा, हाईकोर्ट का आया अहम आदेश Property Rights

By Ankita Shinde

Updated On:

Property Rights भारतीय पारिवारिक संस्कृति में दामाद को विशेष सम्मान प्राप्त होता है। उसे पुत्र के समान मानकर आदर दिया जाता है और ससुराल में अतिथि का दर्जा मिलता है। लेकिन सामाजिक मान्यता और कानूनी अधिकार दो अलग विषय हैं। बेटी का पिता की संपत्ति में बराबर का हक होता है, परंतु क्या दामाद का भी सास-ससुर की संपत्ति में कोई अधिकार होता है? यह सवाल अक्सर पारिवारिक विवादों का कारण बनता है।

हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा दिए गए एक अहम फैसले ने इस मुद्दे पर स्पष्टता प्रदान की है। अदालत ने अपने निर्णय में साफ तौर पर कहा है कि दामाद का सास-ससुर की संपत्ति में रहने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है, खासकर तब जब वह अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह न कर रहा हो।

मामले की विस्तृत जानकारी

यह विवाद भोपाल के निवासी दिलीप मरमठ और उनके ससुर नारायण वर्मा के बीच शुरू हुआ। दिलीप मरमठ ने न्यायालय में दावा किया था कि उन्होंने अपने ससुर के घर के निर्माण में दस लाख रुपए का योगदान दिया था। इस दावे के समर्थन में उन्होंने बैंक स्टेटमेंट भी प्रस्तुत किए थे।

यह भी पढ़े:
सिलेंडर के दामों में आई गिरावट – जानिए कितने की हुई कटौती LPG Cylinder Price New Update

प्रारंभ में, नारायण वर्मा ने अपनी बेटी ज्योति और दामाद दिलीप को अपने घर में रहने की अनुमति दी थी। इस व्यवस्था के तहत दामाद पर अपने बुजुर्ग ससुर की देखभाल करने की जिम्मेदारी थी। हालांकि, 2018 में एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना में ज्योति की मृत्यु हो गई।

परिस्थितियों में आया बदलाव

पत्नी की मृत्यु के बाद दिलीप मरमठ ने दूसरी शादी कर ली। दूसरी शादी के बाद स्थिति पूरी तरह से बदल गई। दामाद ने अपने वृद्ध ससुर की देखभाल करना बंद कर दिया। उन्होंने ससुर को खाना देना और दैनिक खर्च की व्यवस्था करना भी रोक दिया। 78 वर्षीय सेवानिवृत्त कर्मचारी नारायण वर्मा के लिए यह स्थिति अत्यंत कष्टकारी थी, क्योंकि उन्हें अपनी बीमार पत्नी की देखभाल भी करनी पड़ रही थी।

न्यायिक प्रक्रिया की शुरुआत

इस कठिन परिस्थिति में नारायण वर्मा ने माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण व कल्याण अधिनियम 2007 के तहत एसडीएम न्यायालय में आवेदन दाखिल किया। यह कानून विशेष रूप से बुजुर्गों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है। एसडीएम ने मामले की सुनवाई के बाद पाया कि दामाद अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहा है। इसलिए अदालत ने दिलीप मरमठ को ससुर का घर खाली करने का आदेश दिया।

यह भी पढ़े:
1 करोड़ से ज्यादा केंद्रीय कर्मचारियों को झटका, महंगाई भत्ते में नहीं होगी बढ़ौतरी DA Hike Updates

इस आदेश के विरुद्ध दिलीप मरमठ ने कलेक्टर भोपाल के पास अपील दायर की। उनका तर्क था कि उन्होंने घर के निर्माण में आर्थिक योगदान दिया है, इसलिए उनका भी उस संपत्ति में हक बनता है। लेकिन कलेक्टर ने भी एसडीएम के फैसले को बरकरार रखा और दामाद की अपील खारिज कर दी।

हाईकोर्ट का अंतिम निर्णय

निचली अदालतों के फैसले से असंतुष्ट होकर दिलीप मरमठ ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में अपील दायर की। हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने इस मामले की विस्तृत सुनवाई की और सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार किया।

अदालत ने यह देखा कि भले ही दामाद ने घर के निर्माण में आर्थिक योगदान दिया हो, लेकिन यह योगदान संपत्ति के स्वामित्व अधिकार के लिए नहीं बल्कि पारिवारिक जिम्मेदारी के रूप में दिया गया था। न्यायालय ने यह भी नोट किया कि संपत्ति हस्तांतरण कानूनों के तहत कोई औपचारिक संपत्ति हस्तांतरण नहीं हुआ था।

यह भी पढ़े:
अब हर महीने मिलेंगे 200 यूनिट फ्री, बिजली उपभोक्ताओं के लिए आई बड़ी खुशखबरी electricity consumers

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा कि माता-पिता भरण-पोषण कानून के तहत जब कोई व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाता तो वह संपत्ति से बेदखल किया जा सकता है। अदालत ने यह भी स्वीकार किया कि नारायण वर्मा एक सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं जो भविष्य निधि से पेंशन प्राप्त कर रहे हैं और उन्हें अपनी बीमार पत्नी की देखभाल के लिए घर की आवश्यकता है।

कानूनी सिद्धांत और व्यावहारिक प्रभाव

इस निर्णय से कई महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत स्थापित होते हैं। पहला, केवल आर्थिक योगदान देने से संपत्ति में स्वामित्व अधिकार नहीं मिलता जब तक कि औपचारिक हस्तांतरण न हो। दूसरा, पारिवारिक रिश्तों में अधिकार और कर्तव्य दोनों साथ चलते हैं। जब व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता तो उसके अधिकार भी समाप्त हो सकते हैं।

तीसरा, वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण कानून एक प्रभावी कानून है जो बुजुर्गों के अधिकारों की मजबूत सुरक्षा करता है। यह फैसला समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि पारिवारिक रिश्ते केवल अधिकारों के बारे में नहीं बल्कि जिम्मेदारियों के बारे में भी हैं।

यह भी पढ़े:
BSNL ने लॉन्च किया बजट फ्रेंडली रिचार्ज, 30 दिनों की वैलिडिटी के साथ – BSNL Recharge Plan

समाज के लिए शिक्षाप्रद संदेश

इस निर्णय से पारिवारिक संपत्ति और रिश्तों के बारे में कई महत्वपूर्ण सबक मिलते हैं। परिवारों को संपत्ति के मामले में स्पष्टता रखनी चाहिए और सभी व्यवस्थाएं लिखित रूप में होनी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति पारिवारिक संपत्ति में आर्थिक योगदान दे रहा है तो उसकी शर्तें और अपेक्षाएं स्पष्ट होनी चाहिए।

दामादों को समझना चाहिए कि सास-ससुर का सम्मान और देखभाल करना केवल नैतिक कर्तव्य नहीं बल्कि कानूनी आवश्यकता भी हो सकती है। बुजुर्गों को भी अपने अधिकारों के बारे में जानकारी रखनी चाहिए और जरूरत पड़ने पर कानूनी सहायता लेने में हिचकिचाना नहीं चाहिए।

समाज को भी यह समझना चाहिए कि बुजुर्गों की देखभाल केवल परिवार की जिम्मेदारी नहीं बल्कि सामूहिक कर्तव्य है। इस प्रकार के न्यायिक निर्णय समाज में संवेदनशीलता बढ़ाने और पारिवारिक मूल्यों को मजबूत करने में सहायक होते हैं।

यह भी पढ़े:
रिटायर्ड लोगों की बल्ले बल्ले, अब हर महीने मिलेगी ₹3000 पेंशन! EPFO Pension Hike 2025

अस्वीकरण: उपरोक्त जानकारी इंटरनेट प्लेटफॉर्म से ली गई है। हम इस बात की 100% गारंटी नहीं देते कि यह खबर पूर्णतः सत्य है, इसलिए कृपया सोच-समझकर आगे की कार्यवाही करें।

Leave a Comment

Join Whatsapp Group